एक परवाह भरा स्पर्श, दुलार भरा अपनापन महसूस होते ही मुरझाई कली खिल उठती है एक परवाह भरा स्पर्श, दुलार भरा अपनापन महसूस होते ही मुरझाई कली खिल उठती है
वापसी पर वापसी पर
नये पत्तों का बहार भी था नये पत्तों का बहार भी था
पर समझने वाला कौन वहाँ कभी बैठे, किस्मत को कोसे, कभी फड़फड़ाते, परों को रोके..... पर समझने वाला कौन वहाँ कभी बैठे, किस्मत को कोसे, कभी फड़फड़ाते, परों को रोके.....
तनिक भी न हम घबराएं दे और शान्त मन परीक्षा, सदा ही पढ़ी और सुनी है हम सबने ही ये शिक्ष तनिक भी न हम घबराएं दे और शान्त मन परीक्षा, सदा ही पढ़ी और सुनी है हम सबने ही...
वो जो झील को अपनी दोनों आँखों में रखती है , वो ही तो गुलाबों को अपने दोनों रूख़ वो जो झील को अपनी दोनों आँखों में रखती है , वो ही तो गुलाबों को अप...